डिजिटल डेमोक्रेसी
विकास संवाद
मध्यप्रदेश में मीडिया के क्षेत्र में एक नवाचार के रूप में विकास संवाद की शुरुवात वर्ष 2001 में हुई। विकास संवाद की सोच व्यापक जनहित से जुड़े मुद्दों को मीडिया में लाकर बदलाव की कोशिश करने की रही है। एक ऐसा बदलाव, जो समाज को गरीबी, शोषण, भेदभाव से बाहर निकालकर सम्मान, बराबरी और न्याय के रास्ते पर खड़ा कर सके। विकास संवाद की यह कोशिश रहती है कि खांचों में बंधकर बदलाव की पहल न हो, बल्कि सभी विषयों को एक दूसरे से जोड़कर ही देखा जाए और नज़रिए को व्यापक बनाया जाए।
विकास संवाद आज एक सामाजिक शोध, प्रशिक्षण, दस्तावेजीकरण और पैरवी समूह बन कर उभरा है। विकास संवाद की हमेशा यह कोशिश रहती है कि समाज के मुद्दों को समाज के नज़रिए से देखा-समझा जाए। विषयों को बहस के लिए विचार-मूल्य-तथ्य-प्रमाण के कसौटी पर कसा जाए। बदलाव का सूत्र बाहर के बजाये भीतर से ही अंकुरित हो, जिससे प्रक्रिया आगे बढ़ती है, इसलिए विशेषज्ञता पर जोर न दे कर सकारात्मक व्यवहारिता को पोषित करने में ध्यान दिया जाता है। इसी सोच को ध्यान में रखकर यह समूह अध्ययन-विश्लेषण और सामग्री तैयार करने का काम कर रहा है। सामाजिक कार्यकर्ताओं और जन माध्यमों के प्रतिनिधियों के साथ निरंतर संवाद करते रहना हमारे काम का मुख्य हिस्सा है। अपनी समझ और सीख के लिए हम साझेदारी में निरंतर मैदानी काम भी कर रहे हैं।
आज विकास संवाद साथी संस्थाओ के साथ मिलकर मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड, बघेलखंड, महाकौशल, निमाड़, मालवा और निवारी अंचल में सघन रूप से अनुसन्धान, अध्ययन और जन समुदाय से जुड़े मुद्दों पर पैरवी कर रहा है |
राष्ट्रीय महिला, बाल और युवा विकास संस्थान
राष्ट्रीय महिला, बाल और युवा विकास संस्थान (NIWCYD) 1982 में स्थापित किया गया था और वर्ष 1985 में सोसायटी पंजीकरण अधिनियम 1860 के तहत पंजीकृत हुआ। NIWCYD की दृष्टि समुदायों के पूर्ण सशक्तिकरण की प्रक्रिया के माध्यम से आदिवासी और ग्रामीण विकास के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है, जिससे वे किसी भी मुद्दे या कठिनाई के लिए बाहरी समर्थन पर अपनी निर्भरता को कम या समाप्त कर सकते हैं।
NIWCYD का मार्गदर्शन प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करने पर ज़ोर देता है - वास्तविक और संभावित, जो की स्थानीय रूप से उपलब्ध हैं। NIWCYD के प्रयास सतत विकास को सक्षम करते हैं और समुदाय आधारित संगठनों को गरीबों और आदिवासियों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए लड़ने के लिए सशक्त बनाते हैं।
वर्तमान में, संगठन तीन राज्यों महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में काम कर रहा है। संगठन के प्रमुख कार्यक्रम मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदाय पर केन्द्रित हैं।
संपर्क
वर्ष 1987 में, झाबुआ जिले के रायपुरिया में सामाजिक कार्य और अनुसंधान केंद्र (एसडब्ल्यूआरसी), तिलोनिया, राजस्थान की एक इकाई के रूप में संपर्क की स्थापना हुई। तीन साल बाद 1990 में संपर्क ने एक सोसायटी के रूप में पंजीकरण कराया।
हाशिए के समुदायों के सशक्तीकरण और विकास के लिए परिवर्तन की जैविक प्रक्रिया की सुविधा मुहैया कराना संपर्क का विज़न है। समाज और अर्थव्यवस्था की वर्तमान संरचना असमान, अन्यायपूर्ण, शोषक और पर्यावरणीय रूप से अस्थिर है और इसके परिणामस्वरूप भील आदिवासी जैसे हाशिए के समुदायों की आजीविका और आत्मसम्मान का विनाश हुआ है, जिससे वे कमजोर और शक्तिहीन हो गए हैं। बेहतर के लिए बदलाव तभी आ सकता है जब वंचित लोग संगठित तरीके से काम करें और सशक्तिकरण और विकास के कार्यक्रमों के निर्माण और कार्यान्वयन में सक्रिय रूप से भाग लें। परिवर्तन की इस जैविक प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए संपर्क की भूमिका सीमित है।
और संपर्क का मिशन एक ऐसी प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाना है, जिसके माध्यम से वंचित और शक्तिहीन स्वयं को एक न्यायसंगत और स्थायी सामाजिक व्यवस्था के लिए संगठित होंगे, भागीदारी और अहिंसक तरीकों से अपने जीवन स्तर, संसाधन, संस्कृति और सम्मान को विकसित करने के लिए सशक्त होंगे।
झाबुआ के अलावा, संपर्क मध्य प्रदेश के सतना,खरगोन और जबलपुर जिलों को अपने कार्य क्षेत्र के रूप में शामिल करता है।
स्पंदन
स्पंदन ने एक जमीनी स्तर का संगठन है जिसने वर्ष 2001 में मध्यप्रदेश की पोषक रूप से कमजोर कोरकू जनजाति के साथ अपने विकास की यात्रा शुरू की, जहाँ उनके बच्चे कुपोषण से दम तोड़ रहे थे। हाशिए के समुदाय को इस तरह से सशक्त बनाने के लिए कि वे अपने मानव और संवैधानिक अधिकारों को सुरक्षित करने में सक्षम हों और गरिमा का जीवन जी सकें इस मिशन के साथ स्पंदन कार्य कर रहा है ।
अपने संस्थापक सदस्यों सीमा और प्रकाश के नेतृत्व में स्पंदन एक वास्तविक मिशन संचालित और पारदर्शी जमीनी स्तर के संगठन के रूप में विकसित करने में सक्षम रहा है जिसने अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए टीम के काम और लोकतांत्रिक मूल्यों पर जोर दिया है। संगठन कोरकू परिवारों के पोषण की स्थिति की सक्रिय निगरानी में लगा हुआ है, मौजूदा सार्वजनिक खाद्य और रोजगार योजनाओं पर चौकसी रखने के लिए कोरकू को सशक्त बनाने, नीतिगत प्रभाव के लिए समुदाय आधारित कुपोषण प्रबंधन के सूक्ष्म मॉडल की स्थापना, अधिवक्ता कहते हैं कि कोरकू को स्थिति और विशेषाधिकार प्राप्त हैं आदिम जनजाति समूह और लुप्तप्राय कोरकू भाषा और संस्कृति के संरक्षण के लिए प्रयास करते हैं।
स्पंदन वर्तमान में मप्र में खंडवा जिले के खलवा ब्लॉक के 100 गांवों में लगभग 30,000 बच्चों और उनके परिवारों तक पहुंच रहा है।
पृथ्वी ट्रस्ट
पृथ्वी ट्रस्ट एक समाज सेवी संस्था है, समता मूलक समाज की स्थापना के लिए वर्ष 2014 में संस्था की स्थापना हुई। वंचित वर्ग और समुदाय की मूल समस्याओं और उनके समाधान के लिये जन सुनवाई और मीडिया के माध्यम से पैरवी करना संस्था की महत्वपूर्ण रणनीति है।
यूसुफ़ बेग जी के निर्देशन और मार्गदर्शन में संस्था की टीम मुख्य रूप से पन्ना जिले के आदिवासीयों और आदिवासी समाज के लोगो के उत्थान के लिए अलग-अलग मुद्दों जैसे खनन मजदूरों के अधिकार एवं स्वास्थ्य, खनन महिला मजदूरों के हक एवं स्वास्थ्य, आजीविका, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, कुपोषण, सिलिकोसिस जांच, इलाज एवं पुनर्वास, डिजिटल संसाधन के बेहतर उपयोग कृषि और जंगलों से प्राप्त आजीविका, एवं समुदाय के हक़ के लिए नीतिगत बदलाव की दिशा में लगातार जमीनी स्तर पर काम कर रही है।